सफीना–ए–शब के बादबाँ सी बातें
मेरी समंदर, तुम्हारी किनारों की बातें
हर शाम आयत सी हर दिन रमज़ान का
मेरी रोज़े की, तुम्हारी इफ्तार की बातें
वो घाट किनारे धीमी आँच पे पकती
मेरी बटर-चिकन, तुम्हारी इडली-साम्भर की बातें
मैं अल्साई सुबह की उबासी तुम दोपहर की इन्क़लाबी तूतियाँ
मेरी जगजीत, तुम्हारी हनी सिंह की बातें
थीं कितनी जुदा पर करती हमें मुक़म्मल
मेरी yin, तुम्हारी yang सी बातें
लपेट कर रखा है तुम्हें डायरी में जानम
जो अब नहीं होती वो बिना बात की बातें …