सब्र और तलब

वो कहती है इतनी भी क़ुर्बत अच्छी नहीं
कुछ तो सोचो ज़माने की तोहमत अच्छी नहीं

सरे-राह तकते हो शर्मसार मैं हो जाती हूँ
तुम्हारी आँखों की ये शरारत अच्छी नहीं

ये क्या जो बारहा हाथ थाम लेते हो
थोड़ा दूर रहो लज़्ज़त-ए-सोहबत अच्छी नहीं

डर लगता है शहर की आश्ना निगाहों से
पीहर में अपनी हिकायत अच्छी नहीं

विसाल की रूत भी आएगी जाने-जां
यूँ जल्दबाज़ी में मोहब्बत अच्छी नहीं

Distance is just a test to see how far love can travel.

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