ज़ूनी

तुम जा छुपे कहीं हमसफ़र
नहीं मिल रहा मेरा रहगुज़र
हैं भटक रहे हम इधर उधर
मेरा चाँद गुम है जाने किधर
तन्हा अकेले अब लगता है डर
सफ़र नहीं है ये इक सिफ़र

ना है खुशबू हर तरफ है ग़म
ख़ामोशियाँ कर रहीं सितम
नहीं लग रहा कहीं भी मन
तेरी यादें बन गयी ज़ख्म
भूलें तो कैसे इन्हें जानम
इन ज़ख्मों के ये ही मरहम

मोटे चश्मे के पीछे कत्थई आँखें
गहरे समन्दर से भी गहरी आँखें
मेरी हसरत मेरी मुरव्वत वो आँखें
मेरी उजरत मेरी क़िस्मत थीं वो आँखें
गयीं तो ले गयीं साथ अपने
मेरी आँखों का पानी भी तुम्हारी आँखें

किताबों में दर्द समेट रहे हैं
सफ़हे सा दिन पलट रहे हैं
है मालूम फिर भी जाने क्युँ
बेवजह तुम्हरी राह तक रहे है
मेरी ज़ू मेरी ज़ूनी!
तुम थी तो ज़िन्दगी थी
अब तो हम बस जी रहे है…

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