पतझड़

गुज़िश्ता शाम सड़क पे
चिनार के पेड़ से मुलाक़ात हुई
ज़रा जल्दी में था वो
कपड़े थोड़े ज़र्द थोड़े सुर्ख़ थे
कुछ बदन पे कुछ जमीं पे बिखरे थे
कहा उसने
आने वाले रुत की अगुआई करनी है
सो नये कपड़े सिलवाएगा
गुलाबी बूटों वाली कमीज़
और सब्ज़ पत्तों की चमकीली अचकन
कहता हुआ वो आगे बढ़ गया
और मैं ठहरा रह गया
याद-ए-माज़ी के उसी रास्ते पे

काश मैं भी उतार सकता
कुछ उलझे पुराने रिश्ते
और वक़्त दफ़ना देता उन्हें अपने कदमों तले
काश…

Leave a comment