Hope

चलो मुस्कुराने की वजह ढ़ूँढ़ते हैं ज़िंदगी तुम हमें हम तुम्हें ढ़ूँढ़ते हैं ख़ानाबदोशी में उलझें हैं सारे रहगुज़र इस सिफ़र में कोई सफ़र ढ़ूँढ़ते हैं कितना शोर है माज़ी के सियाह जंगल में एक नई सहर कोई नई ग़ज़ल ढ़ूँढ़ते हैं भटक रहे हैं कब से अब्र के टुकड़े सा बरस जाएँ कहीं वो…Read more Hope

परवाज़ – 2

इक परिंदा उड़ चला है आज आसमां नापने हदों को अपनी हौसलों को थोड़ा और तराशने कह रहे हैं संगी-साथी, “कैसे अकेला जाएगा ? रास्तों की सुध नहीं, क्या ख़ाक मंज़िल पाएगा !” बोला वो खुद से, सपनों पे डर की लगाम न लगने दे एड़ मार, घोड़े को खंदक के पार हो जाने दे…Read more परवाज़ – 2

आशाएँ

    मुट्ठी भर सागर की गहराई नाप लूँ दिल में एक सुगबुगाती चाह है मेरी, पंछी बन आकाश भेद दूँ साँसों में ऐसी जान है मेरी, तिनका बन किसी आशियाने में गुम हो जाऊँ पलकों पे ऐसी ख़्वाईश है मेरी, मरूस्थल के शाद्वल सा सबकी तृष्णा मिटाऊँ खुद की ही ऐसी प्यास है मेरी,…Read more आशाएँ

कल का सवेरा

कल फिर एक सवेरा होगा, मिल के देखेंगे एक सपना, आधा मेरा आधा तेरा होगा | आज के ख़ुश्क रुख़सारों पर कल गीले मुसकुराहटों के दो छीटें फेकेंगे, बदली में  जो उम्मीद आज छुपा बैठा है कल उसकी गुनगुनी धूप में नहाएँगे, ताज़ी-ताज़ी चाय की चुस्की के साथ आज की गल्तियों का कड़वा ज़ायका मिटाएँगे,…Read more कल का सवेरा