तुम्हारी फुर्क़त में जो गुज़र रहा है, ये वक्त नहीं है, वो तो जमा पड़ा है उस कयामत के मंज़र में, अब तो बस इंतजार है काश कोई आए ... और पिघला दे अपनी सरग़ोशियों से वो मंज़र ताकि वक्त फिर से बहने लगे ।
Poetry
Waldosia
खामोश ख़लाओं से पूछ रहा हूँ वीरान सहराओं से पूछ रहा हूँ अधमरी जुस्तज़ू से पूछ रहा हूँ तन्हाई के मुसल्सल रक्स से पूछ रहा हूँ सुलगती बेकरारी से पूछ रहा हूँ हर उन यादों से पूछ रहा हूँ “क्यूँ करते हो इतना प्यार मुझसे ?” वो जो चली गई है उसके साथ तुम सब…Read more Waldosia
गुलज़ार साहब – आपके लिए…
बडे दिनों से अलमीरे में पड़ी थी धूल की एक झिल्ली बैठ गई थी कोने मुड़ गए थे उसके, फुरसत में आज निकाला उसे धूल हटाई जालें साफ किेये, गए सावन जो छोड़ गया था आज भी वो बुकमार्क वहीं पड़ा था, पन्ने को सूँघ कर देखा वो नज़्म आज भी गुन्चे सी खुशबूदार थी…Read more गुलज़ार साहब – आपके लिए…
"End" is a better start for everything
आज इस अँधेरे शहर में भटक सा गया हूँ हर निशानी महरूम है सभी बाशिंदे गुमशुदा हैं, बदग़ुमान हवाएँ भी कानों से सट के बस गुजर जा रही हैं इक इशारा भी नहीं देती निगोड़ी, ख़स्ता सी रोशनी लिए ठूँठ सा खड़ा रहने वाला वो खम्भा भी आज कहीं दिख नहीं रहा सिमट गया है…Read more "End" is a better start for everything
माँ
On the occasion of Mother's day, my homage to all the mothers of this world who stayed up all night with sick babies in their arms, swaying cradles, walking all around the house singing lullabies, sharing every bit of joy & sorrow with the cynosure of their eyes and for always being there and saying…Read more माँ
तलाश
अक्सर जब बात-चीत का काफ़िला तुम्हारे मोहल्ले से गुज़रता है हर चौक, हर नुक्कड़ पे ख़लिश गुमसुम जुबां ख़ुदा से दो हर्फ़ माँगता है यूँ तो एक हँसी चिपका के बोल देता हूँ दोस्तों को कि राब्ता नहीं उस गली से पर आज भी उसकी हर ईंट में तुम्हारे निशां ढूँढता हूँ | कहते हैं…Read more तलाश
तोहफ़ा
आज मैं तुम्हें कुछ पल दे रहा हूँ माज़ी की शाख़ से तोड़ कर लाया जो चख-चख कर कुछ मीठे बेर दे रहा हूँ नाज़ुक है, शोख़ है, संभाल कर रखना इसे मखमली शाल में लपेट एक सब्ज़ लम्हा दे रहा हूँ आँखों के चिलमन से उतर मन को भींगाए जो दिल के दरीचों…Read more तोहफ़ा
आशाएँ
मुट्ठी भर सागर की गहराई नाप लूँ दिल में एक सुगबुगाती चाह है मेरी, पंछी बन आकाश भेद दूँ साँसों में ऐसी जान है मेरी, तिनका बन किसी आशियाने में गुम हो जाऊँ पलकों पे ऐसी ख़्वाईश है मेरी, मरूस्थल के शाद्वल सा सबकी तृष्णा मिटाऊँ खुद की ही ऐसी प्यास है मेरी,…Read more आशाएँ
कल का सवेरा
कल फिर एक सवेरा होगा, मिल के देखेंगे एक सपना, आधा मेरा आधा तेरा होगा | आज के ख़ुश्क रुख़सारों पर कल गीले मुसकुराहटों के दो छीटें फेकेंगे, बदली में जो उम्मीद आज छुपा बैठा है कल उसकी गुनगुनी धूप में नहाएँगे, ताज़ी-ताज़ी चाय की चुस्की के साथ आज की गल्तियों का कड़वा ज़ायका मिटाएँगे,…Read more कल का सवेरा
लिख दूँ ….
कल रात तुम दिख गई, एक अरसे से दबी आग फिर सुगबुगा गई, फेसबुक पेज से तुम झाँक रही थी, उसी चश्मे के पीछे वो दो नीलम आँखें, होठों से आहिस्ता-आहिस्ता टपकता वही तबस्सुम का शहद, वो श्यामल संदल सा दमकता बदन, वही उल्झी तंग सी ज़ुल्फें, और उस भीड़ में से एक ख़ुशनसीब लट…Read more लिख दूँ ….